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आलू-प्याज के दाम गिरने से क्यों परेशान नहीं हरियाणा के किसान? किसानों को दी जा चुकी है 9 करोड़ की आर्थिक मदद

 
आलू-प्याज के दाम गिरने से क्यों परेशान नहीं हरियाणा के किसान? किसानों को दी जा चुकी है 9 करोड़ की आर्थिक मदद

कई बार फसलों की बंपर पैदावार किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित होती है. अक्सर मंडियों में ज्यादा फसल पहुंच जाने से कीमतें गिर जाती हैं. फसलों के दाम गिरने की ताजा मिसाल प्याज की सबसे बड़ी मंडी नासिक में देखने को मिल रही है. किसानों को एक रुपये प्रति किलो दाम भी मुश्किल से मिल रहे हैं. कई किसान तो अपनी फसल सड़कों पर फेंक चुके हैं. 


प्याज के अलावा आलू की फसल के दाम भी धड़ाम हो चुके हैं. पिछले साल की तुलना में आलू प्रति क्विंटल 60 से 70 फ़ीसदी कम दाम पर बिक रहे हैं. आलू के अलावा गोभी की फसल के दाम भी काफी हद तक गिर चुके हैं. किसान इस कदर परेशान हैं कि वो फसल की लागत भी वसूल नहीं कर पा रहे. जिन राज्यों में आलू के दाम गिरे हैं उनमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि शामिल हैं. आलू उत्पादकों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है लेकिन हरियाणा एक ऐसा राज्य है जहां के किसान आलू की फसल के दाम गिरने के बावजूद भी इतने ज्यादा दुखी नहीं हैं. 

आलू के गिरते दाम से परेशान नहीं हरियाणा के किसान
दरअसल राज्य सरकार ने भावांतर भुगतान योजना के तहत पहले से ही किसानों के नुकसान की भरपाई करने का इंतजाम कर दिया था. आलू उत्पादक जिस दाम पर भी फसल मंडियों में बेच रहे हैं उसके अलावा राज्य सरकार प्रति किलो रुपये 6 की आर्थिक मदद दे रही है. बागवानी विभाग, हरियाणा के महानिदेशक अर्जुन सिंह सैनी ने बताया कि सरकार ने आलू, प्याज, टमाटर आदि सब्जियों सहित कुल 21 फसलों को भावांतर भुगतान योजना के तहत लाया है ताकि फसल खराब होने और उसके दाम गिरने की स्थिति में किसानों को ज्यादा नुकसान न उठाना पड़े. 

अर्जुन सिंह सैनी ने बताया कि खरीफ वाला आलू क्योंकि ज्यादा दिनों तक मार्किट में नहीं टिक सकता इसलिए अबकी बार मार्केट में ज्यादा फसल पहुंच गई है. सैनी के मुताबिक हर तीसरे साल इस तरह की समस्या सामने आती है. पहले साल नुकसान उठाने पर आलू उत्पादक अगले साल कम क्षेत्रफल पर आलू उगाते हैं जिसकी वजह से कीमतें बढ़ती हैं, लेकिन तीसरे साल में फिर इसी तरह के हालात देखने को मिलेंगे. उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि ऐसी स्थिति पैदा हुई है. इससे पहले भी कई बार इसी तरह के हालात देखने को मिले हैं. 

उन्होंने आगे बताया कि हरियाणा सरकार में किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए एक भावांतर भरपाई योजना शुरू की है. राज्य सरकार इस योजना के अंतर्गत कुल 21 फसलें लाई है, क्योंकि बागवानी की फसलों में एमएसपी देने का प्रावधान नहीं है. इन फसलों पर MSP देना संभव नहीं है क्योंकि यह फसलें प्रतिदिन मंडियों में पहुंचती हैं. भावांतर योजना का दूसरा लक्ष्य है कि किसानों को किसी तरह दूसरी फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया जाए. 

किसानों को दी जा चुकी है 9 करोड़ की आर्थिक मदद
सैनी के मुताबिक जिस सीजन में किसानों को मंडियों में अच्छे दाम नहीं मिलते तो उनको भावांतर भुगतान योजना के अंतर्गत आर्थिक मदद की जाती है. हरियाणा में पिछले चार सालों से भावांतर भुगतान योजना चलाई जा रही है. इसकी शुरुआत मार्च 2018 में की गई थी. अब तक इस योजना के अंतर्गत 21 विभिन्न फसलें लाई जा चुकी हैं. जिसमें से आलू भी एक है. पिछले साल इस भरपाई योजना के तहत प्रति किलो आलू पर 6 रुपये मदद देने का प्रावधान किया गया था. हरियाणा सरकार पिछले चार साल में किसानों को 14 करोड़ की धनराशि जारी कर चुकी है. अबकी बार चूंकि आलू के दाम गिर चुके हैं इसलिए सरकार किसानों को अब तक 9 करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दे चुकी है. इस योजना के तहत 13 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि देने का प्रावधान किया गया है. 

कैसे काम करती है भावांतर भुगतान योजना 
भावांतर भुगतान योजना एक डायरेक्ट बेनिफिट योजना है जिसमें पैसा सीधा किसानों के खाते में जाता है. हरियाणा सरकार 'मेरी फसल मेरा ब्योरा' नाम से एक वेब पोर्टल चलाती है जिसमें किसानों को अपनी फसल और क्षेत्रफल का ब्यौरा देना पड़ता है. फिर उसका सत्यापन किया जाता है. यह पोर्टल गिरदावरी से जुड़ा हुआ है इसलिए किसानों को बार-बार अपने जमीन का ब्यौरा नहीं देना पड़ता.

किसान को जब भी कोई फसल बेचनी होती है तो उसे एपीएमसी मंडियों की तरफ से एक कूपन दिया जाता है. उसके बाद उसे आढ़तिए जे–फॉर्म देते है. इस फॉर्म को एक बार फिर से पोर्टल पर अपलोड कर दिया जाता है. किसान अपनी फसल का ब्योरा पोर्टल पर अपलोड करते हैं तो उसका एक औसत निकाल कर उसका मुआवजा दे दिया जाता है.