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हरियाणा सरकार का बड़ा कदम, शामलात जमीन की मालिक होगी सरकार, बसे रहेंगे काबिज लोग

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। : हरियाणा सरकार ने शामलाती भूमि के विवाद को समाप्त करने के लिए बड़ा कदम उठाया है।
 
हरियाणा सरकार का बड़ा कदम, शामलात जमीन की मालिक होगी सरकार, बसे रहेंगे काबिज लोग

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। Haryana Shamlat Land: हरियाणा सरकार ने शामलाती भूमि के विवाद को समाप्‍त करने के लिए बड़ा कदम उठाया है। शामलाती (पंचायती) जमीन के मालिकाना हक के विवाद को सुलाझने के लिए बीच का रास्ता निकालने में जुटी प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की अवमानना से बचने के लिए कदम आगे बढ़ाए हैं। अब राज्‍य में शामलाती भूमि की मालिक सरकार रहेगी, लेकिन इनपर काबिज लोगों को नहीं हटाया जाएगा।

मुस्तरका और जुमला मालिकान भूमि का मालिकाना हक पंचायतों और स्थानीय निकायों के नाम करने के निर्देश

राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव और वित्तायुक्त राजस्व वीएस कुंडू ने सभी उपायुक्तों को लिखित आदेश जारी किए हैं कि मुस्तरका और जुमला मालिकान भूमि का मालिकाना हक पंचायतों और स्थानीय निकायों के नाम कराया जाए। हालांकि इस बात का जिक्र आदेश में नहीं है कि ऐसी जमीनों पर काबिज लोगों को हटाया नहीं जाएगा। माना जा रहा है कि काबिज लोग पहले की तरह ऐसी जमीनों पर अपने काम धंधे करते रहेंगे, लेकिन सरकार अवैध कब्जे जरूर हटाएगी।

विवाद सुलझाने के लिए बीच का रास्ता तलाश रही सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की अवमानना से बचने के लिए उठाया कदम

सुप्रीम कोर्ट ने सात अप्रैल को जय सिंह बनाम हरियाणा सरकार के मामले में आदेश दिया था कि मुस्तरका और जुमला मालिकान भूमि को लेकर निजी लोगों के नाम हुई रजिस्ट्रियों को रद कर इसका मालिकाना हक पंचायतों और स्थानीय निकायों के नाम किया जाए। इसके बाद वित्तायुक्त राजस्व ने 21 जून को सभी उपायुक्ताें को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू करने के आदेश जारी कर दिए थे। विधानसभा के मानसून सत्र में यह मुद्दा उठा तो प्रदेश सरकार ने जमीन का मालिकाना हक बदलने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी।

इसके बाद 18 अगस्त को वित्तायुक्त राजस्व ने आदेश जारी किए कि जिन लोगों ने मुस्तरका और जुमला मालिकान भूमि की रजिस्ट्री करा ली है, उन्हें सुनवाई का मौका दिया जाए। किसी का कब्जा है तो एसडीएम की कोर्ट बेदखल कर सकती है। म्यूटेशन दर्ज है तो एसडीएम और कलेक्टर को इसे खत्म करने की पावर है। इसलिए नियमानुसार कार्रवाई करें। वित्तायुक्त राजस्व ने अब फिर से उपायुक्तों को पंचायत के नाम जमीन के इंतकाल की प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए हैं।

1991 में बने कानून में बदलाव के लिए चल रहा मंथन, विधानसभा में लाया जा सकता है संशोधन विधेयक

दरअसल 1959 से लेकर 1962 तक संयुक्त पंजाब में चकबंदी के दौरान कुछ जमीन धर्मशाला, जोहड़, गोचरान सहित अन्य सामाजिक कार्यों के लिए छोड़ दी गई थी। इस्तेमाल की गई जमीन को शामलात कहा गया और जो जमीन इस्तेमाल नहीं हुई, उसे मुस्तरका मालिकान व जुमला मालिकान कहा गया। इस्तेमाल नहीं हुई जमीन स्थानीय किसानों की साझी जमीन हो गई। वर्ष 1991 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कानून में संशोधन कर नियम बनाया कि मुस्तरका मालिकान व जुमला मालिकान की खाली जमीन भी पंचायत की होगी। वर्ष 1992 में इस कानून को लागू कर दिया गया।

इसके खिलाफ पहले हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने विगत अप्रैल में सरकार को निजी लोगों द्वारा कब्जाई गई जमीन का मालिकाना हक पंचायतों और निकायों के नाम करने के निर्देश दिए हैं। प्रदेश में करीब दो लाख एकड़ ऐसी जमीन है जिस पर किसान फसलें बो रहे हैं।

हाल ही में कुछ किसानों ने जमीन का मालिकाना हक छीनने का आरोप लगाते हुए पंचकूला-चंडीगढ़ में प्रदर्शन किया था। तब मुख्यमंत्री ने उन्हें कहा था कि सरकार ऐसे लोगों को जमीनों से हटाएगी नहीं और बीच का रास्ता निकालते हुए ऐसा कानून बनाएगी, जो सर्वमान्य हो और जिसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए लोगों को राहत दी जा सके।

कानून के दायरे में रहकर तलाश रहे रास्ता : मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि शामलाती जमीन कई तरह की है। काफी जमीनों पर किसानों व ग्रामीणों ने अपने घर बना रखे हैं। कुछ पर लोग खेती कर रहे हैं। काफी जमीन ऐसी है जिन पर नाजायज कब्जे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के दायरे में रहते हुए ऐसी जमीनों पर काबिज लोगों को राहत दी जाएगी ताकि कानून की अनुपालन भी हो सके और लोगों को भी कोई परेशानी न हो।

उन्‍होंने कहा कि सरकार फिलहाल उन लोगों को भी नहीं छेड़ेगी जिन्हें दान में शामलाती जमीन मिली है और वह उन पर काबिज हैं। देह शामलात, जुमला मुस्तका, पट्टे वाली व दान की जमीनों के मालिकाना हक के लिए प्रदेश सरकार कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है। चूंकि शामलाती जमीनों पर मालिकाना हक को कानूनी मान्यता देने का मामला काफी पेचीदा है, इसलिए इसमें थोड़ा समय लगेगा।